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नास॑त्या मे पि॒तरा॑ बन्धु॒पृच्छा॑ सजा॒त्य॑म॒श्विनो॒श्चारु॒ नाम॑। यु॒वं हि स्थो र॑यि॒दौ नो॑ रयी॒णां दा॒त्रं र॑क्षेथे॒ अक॑वै॒रद॑ब्धा॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nāsatyā me pitarā bandhupṛcchā sajātyam aśvinoś cāru nāma | yuvaṁ hi stho rayidau no rayīṇāṁ dātraṁ rakṣethe akavair adabdhā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नास॑त्या। मे॒। पि॒तरा॑। ब॒न्धु॒ऽपृच्छा॑। स॒ऽजा॒त्य॑म्। अ॒श्विनोः॑। चारु॑। नाम॑। यु॒वम्। हि। स्थः। र॒यि॒ऽदौ। नः॒। र॒यी॒णाम्। दा॒त्रम्। र॒क्षे॒थे॒ इति॑। अक॑वैः। अद॑ब्धा॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:54» मन्त्र:16 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:27» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:16


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सभा और सेना के स्वामी ! (युवम्) आप दोनों (हि) जिससे कि (नः) हम लोगों के लिये (रयिदौ) लक्ष्मी देनेवाले (रयीणाम्) धनों के (दात्रम्) दान की (रक्षेथे) रक्षा करते हैं (अकवैः) कुत्सित भिन्न अर्थात् उत्तम कर्मों से (अदब्धा) नहीं हिंसित हुए (स्थः) होते हैं और जिनकी (अश्विनोः) सूर्य चन्द्रमा के तुल्य (चारु) सुन्दर (नाम) संज्ञा है उन (बन्धुपृच्छा) बन्धुओं का कुशलादि पूछनेवाले (नासत्या) असत्य के त्यागी (मे) मेरे (पितरा) पालन करनेवालों के सदृश (सजात्यम्) समान जातिवाले सुन्दर नाम की रक्षा करो ॥१६॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् लोग माता और पिता के सदृश सबके लिये विद्या और धन देनेवाले धर्मपूर्वक आचरण करते हुए अपने समान जातिवाले तथा अन्य जनों की रक्षा करते हैं, वे सबके पूजा करने योग्य होते हैं ॥१६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह।

अन्वय:

हे सभासेनेशौ युवं हि नो रयिदौ रयीणां दात्रं रक्षेथे अकवैरदब्धा स्थो ययोरश्विनोरिव चारु नामास्ति तौ बन्धुपृच्छा नासत्या मे पितरेव सजात्यं चारु नाम रक्षतम् ॥१६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नासत्या) न विद्यतेऽसत्यं ययोस्तौ (मे) मम (पितरा) पालकौ (बन्धुपृच्छा) यौ बन्धून् पृच्छतस्तौ (सजात्यम्) समानजातौ भवम् (अश्विनोः) सूर्य्याचन्द्रमसोरिव (चारु) सुन्दरम् (नाम) (युवम्) (हि) यतः (स्थः) भवथः (रयिदौ) श्रीप्रदौ (नः) अस्माकम् (रयीणाम्) धनानाम् (दात्रम्) दानम् (रक्षेथे) (अकवैः) अकुत्सितैः कर्मभिः (अदब्धा) अहिंसितौ ॥१६॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसो मातापितृवत्सर्वेभ्यो विद्याधनप्रदा धर्माचारिणः सन्तः सजात्यानन्याँश्च रक्षन्ति ते सर्वेषां पूज्या भवन्ति ॥१६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान लोक माता-पिता यांच्याप्रमाणे सर्वांना विद्या व धन देतात, धर्मपूर्वक आचरण करतात व इतर लोकांचे रक्षण करतात, ते सर्वांचे पूजनीय असतात. ॥ १६ ॥